योग दर्शन, भारतीय दर्शन में बताए गए आस्तिक दर्शनों में से एक है जिन्हें हम षड्दर्शन के नाम से भी जानते हैं, और यह पूरा दर्शन योग पर ही आधारित है। ऐसा कोई भी शास्त्र नहीं है जिसमें योग का वर्णन ना हो परंतु महर्षि पतंजलि कृत योग दर्शन में योग की व्यापक चर्चा होने की वजह से यह शास्त्र, “योग दर्शन” के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यह बहुत ही महत्वपूर्ण और साधकों के लिए बहुत उपयोगी शास्त्र है। इस दर्शन के रचयिता “महर्षि पतंजलि” हैं। यह ग्रंथ अब तक संस्कृत, हिंदी और अन्य कई भाषाओं में लिखा गया है। इस पर कहीं सारे भाष्य एवं टिकाएँ लिखी जा चुकी हैं।
योग दर्शनकार पतंजलि ने आत्मा और जगत् के संबंध में सांख्य दर्शन के सिद्धांतों का ही प्रतिपादन और समर्थन किया है। उन्होंने भी वही पचीस तत्व माने हैं, जो सांख्यकार ने माने हैं। इनमें विशेषता यह है कि इन्होंने कपिल की अपेक्षा एक और छब्बीसवाँ तत्व ‘पुरुषविशेष’ या ईश्वर भी माना है, जिससे सांख्य के ‘अनीश्वरवाद’ से ये बच गए हैं इसीलिए योग को “सेश्वर सांख्य” भी कहा जाता है।
योग दर्शन को चार भागों में विभाजित किया गया है जो है समाधि पाद, साधन पाद, विभूति पाद एवं कैवल्यपाद। योग दर्शन सूत्र रूप है। इसमें कुल 195 सूत्र हैं । समाधिपाद में 51 सूत्रों का वर्णन है साधनपाद में 55 सूत्रों का वर्णन है विभूतिपाद में 55 सूत्रों का वर्णन है कैवल्यपाद में 34 सूत्रों का वर्णन है
यह “अष्टांग योग” भी कहलाता है और अष्टांग शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, अष्ट और अंग अर्थात आठ अंगों में पतंजलि ने इसकी व्याख्या की है।
ये आठ अंग हैं-
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार
धारणा
ध्यान और
समाधि
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