उपनिषद
परिचय
उपनिषद शब्द 3 शब्दों से मिलकर जुड़ा है ‘उप’ अर्थात निकट, ‘नि’ अर्थात श्रद्धा से एवं ‘षद’ का अर्थ होता है बैठना। तो उपनिषद का अर्थ हुआ श्रद्धा पूर्वक निकट या समीप बैठना।
अब यहां पर प्रश्न आता है कि निकट बैठना है परंतु किसके पास बैठना है? हमारी सभ्यता चली आ रही है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए आपको अपने गुरु के सानिध्य में ही बैठना चाहिए तो उपनिषद में भी गुरु के समीप बैठ कर ज्ञान प्राप्त करने को ही कहा गया है। जब आप ज्ञान को प्राप्त करने के लिए गुरु के पास श्रद्धा पूर्वक बैठेंगे तो उसी को ही “उपनिषद” कहा गया है
उपनिषद जैसा कि हमने कहा कि यह 3 शब्दों से मिलकर बना है इसके अंदर ‘उप’ और ‘नि’ उपसर्ग है एवं ‘षद’ धातु है।
उपनिषद् हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं। किसी उपनिषद का सम्बन्ध किस वेद से है, इस आधार पर उपनिषदों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जाता है-
(१) ऋग्वेदीय — 10 उपनिषद्
(२) शुक्ल यजुर्वेदीय — 19 उपनिषद
(३) कृष्ण यजुर्वेदीय — 32 उपनिषद
(४) सामवेदीय — 16 उपनिषद
(५) अथर्ववेदीय — 31 उपनिषद
अब यहां प्रश्न आता है कि उपनिषदों की रचना किसने की?
तो उत्तर है कि उपनिषदों की रचना कई ऋषि-मुनियों ने की। उपनिषदों का काल वैदिक काल माना जाता है परंतु कुछ अपने वैदिक काल के बाद भी आए।
उपनिषदों में वैदिक शिक्षा का विस्तृत विवेचन मिलता है जितने भी ग्रंथ अभी हैं वे सभी ग्रंथ उपनिषदों से संबंध रखते हैं।
उपनिषद में ज्ञान कांड एवं कर्मकांड का वर्णन मिलता है। हम इन्हें ब्रह्मविद्या नाम से भी जानते हैं वेदांत नाम से भी जानते हैं आत्मविद्या एवं योगविद्या नाम से भी उपनिषद को जाना जाता है।
उपनिषद से संबंधित प्रश्न उत्तर
अब प्रश्न आता है कि उपनिषदों की कुल संख्या कितनी है?
मुक्तिकोपनिषद (श्लोक संख्या 30 से 39 तक), के अनुसार उपनिषदों की संख्या 108 है परंतु उपनिषद 108 से भी अधिक है और सभी उपनिषद वेद से आए हैं, परंतु मुक्तिकोपनिषद के अनुसार उपनिषदों की संख्या 108 है और इन 108 उपनिषदों में से आदि गुरु शंकराचार्य जी 10 उपनिषदों को प्रमुख मानते हैं
प्रमुख उपनिषदों की संख्या 11 है जिनमें से आदि गुरु शंकराचार्य जी 10 उपनिषदों को मानते हैं परंतु 11th उपनिषद जिसका नाम श्वेताश्वेतर उपनिषद है उसे वह नहीं मानते क्योंकि यह त्रैतवाद को मानता है, त्रैतवाद अर्थात वह मानता है आत्मा, परमात्मा एवं प्रकृति को।
इस उपनिषद के अनुसार आत्मा, परमात्मा और प्रकृति यह तीन तत्व है परंतु आदि गुरु शंकराचार्य जी अद्वैतवाद को मानते हैं अद्वैतवाद को मानने की वजह से वह श्वेताश्वेतर उपनिषद को अपने बताए गए उपनिषदों में नहीं मानते।
आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा बताए गए 10 प्रमुख उपनिषदों के नाम है:
- ईशावास्योपनिषद
- केनोपनिषद
- कठोपनिषद
- प्रश्नोपनिषद
- मुंडकोपनिषद
- मांडूक्योपनिषद
- ऐतरेयोपनिषद
- तैत्तिरीयोपनिषद
- छान्दोग्य उपनिषद
- बृहदारण्यकोपनिषद
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